बेतरतीब ख़याल -3

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1

मेरे लिए तो काफी है तेरे खुश रहने का इल्म-ओ-खबर,
के बाकी तो सब बेवजह की फिक्रें हैं|

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2

खुश चेहरों को देख के इक कोफ़्त सी होती है आजकल,
एक ही तो आदत थी मेरी और तुने वो भी छुड़वा दी

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रिहाई

बारिश तो अब भी होती है पर वैसी नहीं
चेहरे तो रोजाना मिलते है पर है तेरी कमी
हर बरसती बूंद में ढूंढ़ता हूँ तुझे
कहीं फिर से तेरी नमी भीगा दे मुझे
काले काले इन बादलों से भी ज्यादा दूर है तू
पर तेरी यादों की बूंदों को हर वक़्त महसूस मैं करूँ

एक बार फिर से बरस जा तू
इस बार यूँ बरस कि मैं उबार न सकू
तू डूबा दे मुझे तू गला दे मुझे
बस इस सजा से अब रिहा दे मुझे

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